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ग़ज़ल
रस्म-ओ-राह-ए-का'बा-ओ-बुत-ख़ाना से हूँ बा-ख़बर
मुख़्तलिफ़ अंदाज़ के सज्दे किया करता हूँ मैं
अम्न लख़नवी
ग़ज़ल
ये तेरी बे-ज़री और हासिदों का ये हसद तौबा
अगर ऐ 'अम्न' तेरे पास ज़र होता तो क्या होता
अम्न लख़नवी
ग़ज़ल
हर इक ठोकर पे है ऐ 'अम्न' लग़्ज़िश का गुमाँ मुझ को
हर इक पत्थर नज़र संग-ए-दर-ए-मय-ख़ाना आता है
अम्न लख़नवी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐसी बस्ती में मियाँ अम्न-ओ-अमाँ का क्या सवाल
सुल्ह-जू कम हों जहाँ पर और बलवाई बहुत
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
बुरा हो बद-गुमानी का वो नामा ग़ैर का समझा
हमारे हाथ में तो परचा-ए-अख़बार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इस दौर में सुकून-ओ-क़रार-ओ-क़ियाम-ए-अम्न
'ख़ालिद' मुझे तो लगता है वहम-ओ-गुमान सा