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ग़ज़ल
इतना ज़िंदा रहे हम जिस से खुलीं मा'नी-ए-मौत
सुब्ह-ए-ईजाद में क़स्द-ए-अदम आबाद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जी धड़कता है कहीं तार-ए-रग-ए-गुल चुभ न जाए
सेज पर फूलों की करते क़स्द-ए-ख़ुफ़तन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दुश्मनों में भी रहा रब्त-ए-मोहब्बत बरसों
ख़ुश न आया कसी माशूक़ को याराना-ए-इश्क़