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ग़ज़ल
मिला भी ज़ीस्त में क्या रन्ज-ए-रह-गुज़ार से कम
सो अपना शौक़-ए-सफ़र भी नहीं ग़ुबार से कम
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
रंज-ए-रह क्यूँ खींचिए वामांदगी को इश्क़ है
उठ नहीं सकता हमारा जो क़दम मंज़िल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए