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ग़ज़ल
हरीम-ए-इश्क़ के पर्दों से लौ निकलती है
ये सोज़-ओ-साज़ है किस नग़्मा-ए-रबाब की आँच
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हरीम-ए-इश्क़ के पर्दों से लौ निकलती है
ये सोज़-ओ-साज़ है किस नग़्मा-ए-रबाब की आँच