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ग़ज़ल
नहीं रहती कभी रफ़्तार-ए-ज़माना यकसाँ
दहर में दिन है कभी और कभी रात वसीअ'
मलिका आफ़ाक़ ज़मानी बेगम
ग़ज़ल
रफ़्तार-ए-ज़माना ने बताया ये सबब है
नाव को डुबो देते हैं ग़द्दार नमक के
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
मुख़्लिस हो रहो टोका है किस ने तुम्हें 'अंजुम'
रफ़्तार-ए-ज़माना भी मगर ध्यान में रखना
अंजुम ख़लीक़
ग़ज़ल
रफ़्तार-ए-ज़माना का लहजा सफ़्फ़ाक दिखाई देता है
बर-वक़्त कोई तदबीर करो आफ़ात की निय्यत ठीक नहीं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
दूर-अँदेशी जिस में होगी रफ़्तार-ए-ज़माना उस की है
ख़्वाब की आख़िरी मंज़िल आनी है ता'बीरें रौशन रखो
नाज़िर वहीद
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आज भी हैं वो सुलगे सुलगे तेरे लब ओ आरिज़ की तरह
जिन ज़ख़्मों पर पंखा झलते एक ज़माना बीत गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बुलबुलों से नहीं गुलज़ार-ए-ज़माना ख़ाली
शुक्र है याँ भी हम-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'बेबाक' मिटा सकता नहीं हम को ज़माना
हम हक़ के लिए बर-सर-ए-पैकार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए