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ग़ज़ल
रह रह कर जो थक कर बैठे उस को चलना कब आता है
यार मुसलसल चलते रहने से चलने का ढब आता है
इरशाद अंजुम
ग़ज़ल
रह रह कर क्यों दिल तड़पा है मैं भी सोचूँ तू भी सोच
प्यार में आख़िर ऐसा क्या है मैं भी सोचूँ तू भी सोच
नसीम रिफ़अत ग्वालियारी
ग़ज़ल
तुझ से रह रह कर मुझे आती है क्या क्या बू-ए-दोस्त
दिल हुआ जाता है मुज़्तर ऐ हवा-ए-कू-ए-दोस्त
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
हमें याद आवती हैं बातें उस गुल-रू की रह रह के
नहीं हैं बाग़ में मुश्ताक़ हम बुलबुल के चह चह के
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं
मगर दाग़-ए-जिगर पर सूरत-ए-लाला लहकते हैं