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ग़ज़ल
हम को रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त के मौसम याद हैं
या'नी अपनी शाइ'री ख़ुशबू से भर जाएँगे हम
पुष्पराज यादव
ग़ज़ल
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
सुना दी किस ने रूदाद-ए-ग़म-ए-दिल कोहसारों को
मैं अक्सर सोचता हूँ देख कर इन आबशारों को
नाज़िम बरेलवी
ग़ज़ल
ग़म-ए-उल्फ़त में डूबे थे उभरना भी ज़रूरी था
हमें राह-ए-मोहब्बत से गुज़रना भी ज़रूरी था
अम्बर जोशी
ग़ज़ल
ग़म-ए-उल्फ़त के मनाज़िर भी हैं प्यारे कितने
अश्क टपके तो बने चाँद सितारे कितने
मुस्लिम मलेगाँवी
ग़ज़ल
ग़म-ए-उल्फ़त मिरे चेहरे से अयाँ क्यूँ न हुआ
आग जब दिल में सुलगती थी धुआँ क्यूँ न हुआ
शकेब जलाली
ग़ज़ल
ज़माने में ग़म-ए-उल्फ़त के दीवाने बहुत से हैं
शराब-ए-ऐश-ओ-इशरत के भी मस्ताने बहुत से हैं
अकमल आल्दूरी
ग़ज़ल
कुछ इस तरह ग़म-ए-उल्फ़त की काएनात लुटी
मिरी ज़बान से निकली हर एक बात लुटी