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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
अभी मुंतशिर न हो अजनबी न विसाल-रुत के करम जता
जो तिरी तलाश में गुम हुए कभी उन दिनों का हिसाब कर
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
रूप को धोका समझो नज़र का या फिर माया-जाल कहो
प्रीत को दिल का रोग समझ लो या जी का जंजाल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
उसे पढ़ के तुम न समझ सके कि मिरी किताब के रूप में
कोई क़र्ज़ था कई साल का कई रत-जगों का उधार था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
अब तो याद आता नहीं कैसा था अपना रंग-रूप
फिर मिरी सूरत दिखा दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
'इंशा' जी क्या उज़्र है तुम को नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूप-नगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना
जितने भी हैं रूप तुम्हारे जीते-जी दिखला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
इंसानों के रूप में जिस दम साए भटकें सड़कों पर
ख़्वाबों से दिल चेहरों से आईने डरने लगते हैं