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ग़ज़ल
शौक़ है सामाँ-तराज़-ए-नाज़िश-ए-अरबाब-ए-अज्ज़
ज़र्रा सहरा-दस्त-गाह ओ क़तरा दरिया-आश्ना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वादी-ए-शौक़ में जो शो'ला-ब-दामाँ निकला
वाक़िफ़-ए-रस्म-ओ-रह-ए-कूचा-ए-जानाँ निकला
सय्यद सिद्दीक़ हसन
ग़ज़ल
नक़्श-ए-हैरत हैं मिरे अहबाब तारों की तरह
सब की आँखें हैं खुली पर देखता कोई नहीं
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
मेरी जबीं की तरफ़ झुक रहे हैं कौन-ओ-मकाँ
ये किस का नक़्श-ए-क़दम आज सज्दा-गाह में है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
दिल हमारा गौहर-ए-ग़लतान-ए-बहर-ए-इश्क़ है
दम हमारा शोरिश-ए-तूफ़ान-ए-बहर-ए-इश्क़ है
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
बे-वज्ह ये हंगाम-ए-बहाराँ तो नहीं है
कुछ साज़िश-ए-अर्बाब-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
गुल-ओ-समन नहीं गुलचीं तो ख़ार रहने दे
चमन में कुछ तो निशान-ए-बहार रहने दे