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ग़ज़ल
ये कैसी सरगोशी-ए-अज़ल साज़-ए-दिल के पर्दे हिला रही है
मिरी समाअत खनक रही है कि तेरी आवाज़ आ रही है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
कैफ़ सा अब हो गया पैदा ग़म-ए-‘अय्याम में
क्या तिलिस्म-ए-सरख़ुशी है दौर-ए-सुब्ह-ओ-शाम में
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए
या होश में जाना भूल गए या होश में आना भूल गए
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं
न पूछो कैसे कैसे तीर-ओ-पैकाँ याद आते हैं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
मुझ को सुपुर्द-ए-गर्दिश-ए-अय्याम कर दिया