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ग़ज़ल
मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँ
जो कुछ कि हूँ सो हूँ ग़रज़ आफ़त-रसीदा हूँ
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
नक़ाब चेहरे से वो शो'ला-रू उठा लेता
तो चश्म-ए-बद को मैं आँखों का तिल जला लेता
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
कुदूरत बढ़ के आख़िर को निकलती है फ़ुग़ाँ हो कर
ज़मीं ये सर पर आ जाती है इक दिन आसमाँ हो कर
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं
भला बुलबुल पे यूँ भी ज़ुल्म ऐ सय्याद करते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
न हवा-ए-जाह-ए-सिकंदरी न हवस कि महफ़िल-ए-जम मिले
मिरे दोस्त तेरे दयार की मुझे ख़ाक ज़ेर-ए-क़दम मिले
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
मुझ सा भी कोई इश्क़ में है बद-गुमाँ नहीं
क्या रश्क देख कर मुझे रंग-ए-ख़िज़ाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
अंदाज़ निराला है अदा और ही कुछ है
ये हुस्न नहीं नाम-ए-ख़ुदा और ही कुछ है
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
रहा करते हैं मय-ख़ानों में हम पीर-ए-मुग़ाँ हो कर
तबीअत ज़िंदा-दिल रखती है पीरी में जवाँ हो कर