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ग़ज़ल
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जानते हो नहीं चलना तो यूँ चलते क्यूँ हो
आज भी ग़ाफ़िल-ए-मंज़िल हो निकलते क्यूँ हो