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ग़ज़ल
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
तफ़तीश-ए-सनम को सू-ए-हरम हम जान के दिल में दैर चले
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
वहशी हूँ मैं क्या शय है बयाबाँ मिरे आगे
मजनूँ हूँ मैं क्या जैब-ओ-गरेबाँ मिरे आगे
नबी बख़्श नायाब
ग़ज़ल
मैं अजीब हूँ नहीं मुख़्तलिफ़ हाँ अजीब हूँ
वहाँ सारा शहर है ख़ुश जहाँ मैं उदास हूँ
अरशद अब्बास ज़की
ग़ज़ल
घर की खिड़की में सर-ए-शाम दिया रखता है
किस के आने की वो उम्मीद लगा रखता है