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ग़ज़ल
उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़ुक़ में डूब गया
रोते रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
हिम्मत किस की है जो पूछे ये 'आरज़ू'-ए-सौदाई से
क्यूँ साहब आख़िर अकेले में ये किस से बातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
ढब देखे तो हम ने जाना दिल में धुन भी समाई है
'मीरा-जी' दाना तो नहीं है आशिक़ है सौदाई है