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ग़ज़ल
झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल
शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'नज़ीर' ऐसा जो चंचल दिलरुबा बहरूपिया होवे
तमाशा है फिर ऐसे शोख़ से सौदे का पट जाना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इश्क़ उन की बला जाने आशिक़ हों तो पहचाने
लो मुझ को अतिब्बा ने सौदे का ख़लल जाना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तअल्लुक़ है वही ता-हाल उन ज़ुल्फ़ों के सौदे से
सलासिल की गिरफ़्तारी जो आगे थी सो अब भी है