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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
उफ़ ये ज़मीं की गर्दिशें आह ये ग़म की ठोकरें
ये भी तो बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता के शाने हिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बहुत ही ख़ूब शय है इख़्तियारी शान-ए-ख़ुद्दारी
अगर मा'शूक़ भी कुछ और बे-परवा न हो जाए
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल पर मिरी बर्बादियाँ सदक़े
जो बर्बाद-ए-तमन्ना हो उसे बर्बाद रहने दे
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
कैसे कैसे चश्म ओ आरिज़ गर्द-ए-ग़म से बुझ गए
कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
उमीदों में भी उन की एक शान-ए-बे-नियाज़ी है
हर आसानी को जो दुश्वार हो जाना समझते हैं