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ग़ज़ल
हर हाल में मेरा दिल-ए-बे-क़ैद है ख़ुर्रम
क्या छीनेगा ग़ुंचे से कोई ज़ौक़-ए-शकर-ख़ंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'सफ़ी' को मुस्कुरा कर देख लो ग़ुस्से से क्या हासिल
उसे तुम ज़हर क्यों देते हो जो मरता है शक्कर से