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ग़ज़ल
फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए
क़लम है रक़्स में आशोब-ए-जाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-गुल ज़ख़्म है मेरा भी सिनाँ से तव्वाम
तेरा तरकश ही कुछ आबिस्तनी-ए-तीर नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यूँ दाद-ए-सुख़न मुझ को देते हैं इराक़ ओ पारस
ये काफ़िर-ए-हिन्दी है बे-तेग़-ओ-सिनाँ ख़ूँ-रेज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
है सर शहीद-ए-इश्क़ का ज़ेब-ए-सिनान-ए-यार
सद शुक्र बारे नख़्ल-ए-वफ़ा बारवर तो है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मार ग़म्ज़ा की बला तीर-ए-निगह दस्त-ए-सिनाँ
तेग़-ए-अबरू की सितम तरकश-ए-मिज़्गान परी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अदाएँ बाँकी अजब तरह की वो तिरछी चितवन भी कुछ तमाशा
भंवें वो जैसे खिंची कमानें पलक सिनाँ-कश निगाह भाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तुम्हारे हाथ से सीने में दिल से ता-बा-जिगर
सिनान ओ ख़ंजर ओ पैकाँ की है दुकान लगी
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वाँ अबरू-ओ-मिज़्गाँ के हैं तेग़-ओ-सिनाँ चलते
टुक सोच तो मैं तुझ को किस किस से बचा लूँगा