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ग़ज़ल
सुर्मा जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह-फ़ाम हो गया
फ़ित्ना सवार-ए-अबलक़-ए-अय्याम हो गया
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
मैं गोर में चराग़-ए-सर-ए-शाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
जब तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम सँवरती होगी
कितनी दुनिया तिरे जलवोें से निखरती होगी
क़ैसर हैदरी देहलवी
ग़ज़ल
पियाला दूध का गालों के सामने है रख्खा
वो गाल पर तिरे ज़ुल्फ-ए-सियाह-फ़ाम नहीं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
एज़ार-ए-यार पे ज़ुल्फ-ए-सियाह-फ़ाम नहीं
मगर ये हश्र का दिन है कि जिस की शाम नहीं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
और खिल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में
पेच ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम अभी बाक़ी हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में
पेच ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम अभी बाक़ी हैं