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ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दिल को हुस्न-ए-ग़म-ए-जानाँ से फ़रोज़ाँ कर दें
कुफ़्र में रंग भरें ऐसा कि ईमाँ कर दें
मख़मूर भोपाली
ग़ज़ल
सब जिसे कहते हैं वक़्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ होना
अव्वलीं शर्त है उस के लिए इंसाँ होना
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
फिर हुजूम-ए-ग़म-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
फिर मिरी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
ग़ज़ल
फ़साना-ए-ग़म-ए-जानाँ किसी पे बार नहीं
अब अपने दिल के सिवा कोई राज़दार नहीं
उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
अबरार आबिद
ग़ज़ल
दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ
होता तो आज होता ये दर्द-ए-निहाँ कहाँ
शांति लाल मल्होत्रा
ग़ज़ल
सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ जलाए तो क्या करूँ
दर-पर्दा कोई आग लगाए तो क्या करूँ
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
हरगिज़ न हो ऐ दिल ग़म-ए-जानाँ की शिकायत
करता है भला कोई भी मेहमाँ की शिकायत