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ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों को क्या सुनाऊँ दास्तान-ए-इश्क़-ए-यार
सुनने वाले मिलते हैं दर्द-आश्ना मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है
तिरी इक निगाह की बात है मिरी ज़िंदगी का सवाल है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
वो जो शा'इरी का सबब हुआ वो मु'आमला भी 'अजब हुआ
मैं ग़ज़ल सुनाऊँ हूँ इस लिए कि ज़माना उस को भुला न दे
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
क्यूँ आ के हर इक शख़्स मिरे ज़ख़्म कुरेदे
क्यूँ मैं भी हर इक शख़्स को हाल अपना सुनाऊँ
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
किसे हर्फ़-ए-हक़ सुनाऊँ कि यहाँ तो उस को सुनना
न ख़वास चाहते हैं न अवाम चाहते हैं