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ग़ज़ल
ख़ार-ए-तैबा को गुल-ए-ख़ुल्द से बढ़ कर समझे
हम ने इन काँटों में वो बू-ए-मोहब्बत देखी
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हूरें ले जाएँगी पैराहन बसाने के लिए
इत्र ख़ाक-ए-पाक-ए-तैबा का तो ऐ अत्तार खींच
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
सय्यद मुईनुद्दीन मख़्फ़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-मस्त-ए-तैबा इम्बिसात-ए-दिल का बाइ'स है
वहाँ हर इक पे तारी सरख़ुशी सी होती जाती है
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
ग़ज़ल
चमन-बदोश है हर ज़र्रा अर्ज़-ए-तैबा का
बहार-ए-गुलशन-ए-गुलहा-ए-तर की बात न कर
हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची
ग़ज़ल
तैबा से बहुत दूर हैं बे-लुत्फ़ है जीना
वो सुब्ह मयस्सर नहीं वो शाम नहीं है