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ग़ज़ल
न जाने सख़्त क्यूँ है दिल तिरा हैरत सी होती है
तलब पैग़ाम की तेरे मुझे अक्सर रुलाती है
मोनिका सिंह
ग़ज़ल
तिरा ज़ुल्म-ओ-सितम तुझ को नहीं मालूम ऐ ज़ालिम
तिरी बेदाद का इक शोर सक़्फ़-ए-आसमाँ तक है
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
गुफ़्तम कि क़द तुम्हारा गुफ़्ता कि सर्व-ए-तन्नाज़
गुफ़्तम कि दिल तिरा क्या गुफ़्ता कि सख़्त पत्थर
फ़ाएज़ देहलवी
ग़ज़ल
अफ़ीफ़ सिराज
ग़ज़ल
शब-ए-ग़म में भी मेरी सख़्त-जानी को न मौत आई
तिरा काम ऐ अजल अब ख़ंजर-ए-क़ातिल से निकलेगा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
दिए जलते न पलकों पर न बज़्म-ए-आरज़ू सजती
बड़ा एहसान दिल पर है तिरा जूद-ओ-सख़ा वाले
बदीउज़्ज़माँ सहर
ग़ज़ल
सख़्त पत्थर है तिरा नाज़ बुत-ए-संगीन दिल
वो उठाए तिरे ग़मज़ों को जो बँधानी हो
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
गिरामी चिश्ती
ग़ज़ल
ऐ मिरे शौक़-ए-शहादत तिरा हाफ़िज़ है ख़ुदा
सख़्त जाँ मैं भी हूँ और धार भी ख़ंजर में नहीं