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ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चंदा जैसा रूप था अपना फूलों जैसी रंगत थी
तेरे ग़म की धूप में जल कर कुमलाए मुरझाए हम
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
सोचा था तिरे ग़म को निभाएँगे कहाँ तक
लेकिन ये त'अल्लुक़ तो चला आया है जाँ तक
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
कोई आ के जैसे चला गया कोई जा के जैसे गया नहीं
मुझे अपना घर कभी घर लगा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया