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ग़ज़ल
धार पे बाड़ रखी जाए और हम उस के घायल ठहरें
मैं ने देखा और नज़रों से उन पलकों की धार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ग़ैर डेवढ़ी पर किया करते हैं आराइश का ज़िक्र
हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर ठहरी तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
दीन हो कि ये दुनिया राएगाँ ही ठहरें हम
मुफ़्त में तो ये आख़िर दो-जहाँ नहीं मिलते
नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल
किसी के वास्ते सर्माया-ए-दुनिया-ओ-दीं ठहरें
वही नज़रें जिन्हें ग़ारत-गर-ए-ईमाँ भी कहते हैं