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ग़ज़ल
इन फ़ज़ाओं में उमडती फैलती ख़ुश्बू है वो
इन ख़लाओं में रवाँ, बन कर हवा रहता हूँ मैं
अनवर महमूद खालिद
ग़ज़ल
फ़सादों के लिए राहें यूँ समझो खोल देता है
उमडती भीड़ से जाने वो क्या कुछ बोल देता है