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ग़ज़ल
मुद्दई ख़ुश थे सज़ा-ए-मौत पर 'तारिक़' मगर
क्यों मुझे मुंसिफ़ का चेहरा इतना अफ़्सुर्दा लगा
तारिक़ मुस्तफ़ा
ग़ज़ल
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की
दिल पर दिल की ज़र्ब लगाई एक मोहब्बत जारी की
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद