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ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ में ख़्वाबों का इक समुंदर था
खुली जो आँख तो मैं हादसे की ज़द पर था
मोहम्मद सिद्दीक़ नक़वी
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ ने मेरी जहाँ देखा जिधर देखा
उसी को जल्वा-गर हर-सू ब-अंदाज़-ए-दिगर देखा
क़ाज़ी जलाल हरीपुरी
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ को जब तेरा नक़्श-ए-पा न मिला
मुझे भी हुस्न-ए-हक़ीक़त का आइना न मिला
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ में यूँ ज़ुल्फ़ के सब पेच-ओ-ख़म डूबे
अक़ीदत की नदी में जैसे पत्थर के सनम डूबे
सरदार पंछी
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-हुस्न-ए-फ़ितरत होती जाती है
तबीअ'त महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत होती जाती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख
आँखें खुल जाएँगी ये मंज़र-ए-दिलदार तो देख