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ग़ज़ल
रात की सम्त देखो नहीं नींद उस दिन से आई नहीं
जब से वालिद के ही सामने उस के बेटे अलग हो गए
आदर्श दुबे
ग़ज़ल
जो वालिद का बुढ़ापे में सहारा बन नहीं सकता
जो सच पूछो तो हो लख़्त-ए-जिगर अच्छा नहीं लगता
अनवार फ़िरोज़
ग़ज़ल
मिरे वालिद की कमज़ोरी बताती इक हक़ीक़त है
गुज़र जाती है सारी उम्र मेहनत में मशक़्क़त में
इरफान आबिदी मानटवी
ग़ज़ल
मेरे वालिद का तसर्रुफ़ है मिरा अर्ज़-ए-हुनर
वर्ना मैं बज़्म-ए-अदब में नहीं पाया जाता
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
अदू की माँ है गोरी और वालिद इस के काले हैं
इसी बाइ'स उन्हों ने अबलक़ी बच्चे निकाले हैं
बूम मेरठी
ग़ज़ल
कहा करते थे वालिद क़ैस के फ़र्त-ए-मोहब्बत में
नहीं मा'लूम किस जंगल में बर-ख़ुरदार बैठे हैं
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
मुझे शोहरत 'अता की ज़हर-ए-रुस्वाई का पैकर भी
मिरे वालिद के भीतर भी कोई शंकर रहा होगा
समीर परिमल
ग़ज़ल
कहा करते हैं वालिद 'बूम' के जोश-ए-मोहब्बत में
नहीं मालूम किस जंगल में बर-ख़ुरदार बैठे हैं