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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बात ये है कि सुकून-ए-दिल-ए-वहशी का मक़ाम
कुंज-ए-ज़िंदाँ भी नहीं वुसअ'त-ए-सहरा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमान-ए-वफ़ा
उस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
क़ैद में है तिरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद
हाँ कुछ इक रंज-ए-गिराँ-बारी-ए-ज़ंजीर भी था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तार-ए-निगह में उस के क्यूँकर फँसे न ये दिल
आँखों ने जिस के लाखों वहशी ग़ज़ाल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को
तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इस वास्ते कि हैं ये वहशी निकल न जावें
आँखों को मेरी मिज़्गाँ डोरों से कसतियाँ हैं