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ग़ज़ल
हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन
तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
एक निगाह का सन्नाटा है इक आवाज़ का बंजर-पन
मैं कितना तन्हा बैठा हूँ क़ुर्बत के वीराने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
जब तक दीवाने ज़िंदा हैं फूलेंगी फलेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
न क़द्र-दाँ, न कोई हम-ज़बाँ, न इंसाँ दोस्त
फ़ज़ा-ए-शहर से बेहतर हैं अब तो वीराने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
देख के उस बस्ती की हालत वीराने याद आते हैं