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ग़ज़ल
बाक़र मेहदी
ग़ज़ल
तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो
फिर उस के बा'द यारब सर कटे नाले में मदफ़न हो
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
समझता है वो ख़ुद को आप के रुख़ के मुक़ाबिल का
ज़रा इंसाफ़ से कहिए ये मुँह है माह-ए-कामिल का
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
वस्ल में है अपनी क़िस्मत की ख़लिश भी यादगार
दामन-ए-शब से उलझ जाते हैं अक्सर ख़ार-ए-सुब्ह
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
करे है फ़रियाद एक आलम गली में उस की है शोर-ए-महशर
जो एक होए तो कीजे इंसाफ़ उस के हैं दाद-ख़्वाह लाखों
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
या ज़माने में मोहब्बत के फ़साने हैं ग़लत
या मिरा नक़्श-ए-वफ़ा है मिरे दिल पर उल्टा