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ग़ज़ल
ख़ुदा के घर में क्या है काम ज़ाहिद बादा-ख़्वारों का
जिन्हें मिलती नहीं वो तिश्ना-ए-ज़मज़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
फ़रिश्तों को बना देती हैं दीवाने तिरी आँखें
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मोहब्बत तो तलब की राह में इक ऐसी ठोकर है
कि जिस से ज़िंदगी की रेत में ज़मज़म उबलते हैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
'आरिश' सुराही-दार सी गर्दन के सेहर में
ज़मज़म सी गुफ़्तुगू को भी रम गिन रहा हूँ मैं
सरफ़राज़ आरिश
ग़ज़ल
तवाफ़-ए-का'बा बे-कैफ़िय्यत-ए-मय हो नहीं सकता
मिला लेते हैं थोड़ी सी अगर ज़मज़म भी पीते हैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ज़मज़म हरम से आता है 'रासिख़' के वास्ते
वो ख़ाना-ए-ख़ुदा है वहाँ कुछ कमी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
फ़क़त मेहनत मशक़्क़त का नतीजा कम निकलता है
दुआ जब माँ की शामिल हो तो फिर ज़मज़म निकलता है