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ग़ज़ल
अलम-नशरह हुआ सिर्र-ए-ख़फ़ी हिज़्यान-ए-मस्ती में
असर था 'ज़ार' ये शुर्ब-ए-शराब-ए-हाल-ए-विज्दाँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
ये रंग पाश हुए हैं वो आज ऐ 'नादिर'
है फ़र्श-ए-बज़्म-ए-तरब लाला-ज़ार होली में
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़
न निभने देगा दिल-ए-ज़ार ओ बे-क़रार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मज़ा तो जब है बहारों की फ़ैज़-ओ-बख़्शिश का
कि 'अस्र' जाम भी बे-अर्ज़-ओ-इलतिमास चले