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ग़ज़ल
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मिरा दिल न था अलम-आश्ना कि तिरी अदा पे नज़र पड़ी
वो न जाने कौन सा वक़्त था कि बिना-ए-ख़ून-ए-जिगर पड़ी
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
ग़लत था ऐ जुनूँ शायद तिरा अंदाज़ा-ए-सहरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का
गाह आबिद हूँ ख़ुदा का गह पुजारी राम का
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना
मुझे ख़ुद करेगा सज्दा तिरा संग-ए-आस्ताना