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ग़ज़ल
ज़िंदानियान-ए-काकुल-ए-हस्ती किधर को जाएँ
इक ज़ुल्फ़ सब के पाँव की ज़ंजीर हो गई
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
काकुल-ओ-चश्म-ओ-लब-ओ-रुख़सार की बातें करो
ज़ुल्मत-ए-दौराँ में हुस्न-ए-यार की बातें करो
इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
हमेशा दिल में जो अपने ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ओ-काकुल है
तो सीने में नफ़स हर एक मौज-ए-बू-ए-सुम्बुल है
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
अब वही नज़रें जो देती थीं शुऊ'र-ए-हस्ती
हम को ना-कर्दा गुनाही की सज़ा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में फूल नहीं हैं ख़ार बहुत हैं 'हस्ती' जी
प्यार का दुश्मन सारा ज़माना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
किसी दिन मुझ को ले डूबेगा हिज्र-ए-यार का सदमा
चराग़-ए-हस्ती-ए-मौहूम होगा गुल समुंदर में