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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
है हर दम नाचने गाने का ये तार बँधाया होली ने
हर जागह थाल गुलालों से, ख़ुश-रंगत की गुल-कारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जवाँ सीने की मख़रूती उठानें सर-निगूँ कर दे
घने बालों को कम कर दे मगर रख़शंदगी दे दे