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नज़्म
है शायद मुझ को सारी उम्र उस के सेहर में रहना
मगर मेरे ग़रीब अज्दाद ने भी कुछ किया होगा
जौन एलिया
नज़्म
वो मेरा यूसुफ़-ए-सानी वो शम-ए-महफ़िल-ए-इश्क़
हुई है जिस की उख़ुव्वत क़रार-ए-जाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
इसी के सब करिश्मे ये नज़र आते हैं दुनिया में
इसी के दम से रौनक़ आलम-ए-इम्काँ की है सारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
मिरी गुड़िया तिरी रुख़्सत का दिन भी आ गया आख़िर
सिमट आया है आँखों में तेरा बीता हुआ बचपन