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नज़्म
ज़ेब उस्मानिया
नज़्म
हम जो इक जाँ के सफ़र पर हैं रवाँ बरसों से
हम को मालूम नहीं कब और कहाँ ख़त्म हो ये
मोहम्मद अफ़सर साजिद
नज़्म
इक जनाज़े को उठाए जा रहे थे चंद लोग
तुम ने पूछा क्या हुआ क्यूँ जा रहे हो तुम मलूल
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है
मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है