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नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये खेप भरे जो जाता है ये खेप मियाँ मत गिन अपनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मिरे बाज़ू पे जब वो ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ खोल देती थी
ज़माना निकहत-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं में डूब जाता था