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नज़्म
ख़त्म हो जाएगा लेकिन इम्तिहाँ का दौर भी
हैं पस-ए-नौह पर्दा-ए-गर्दूं अभी दौर और भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वो पूरे हैं आगाह गुरु
वो कामिल-ए-रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे नाह गुरु
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जब निगल लेता है तूफ़ाँ बढ़ के कश्ती नूह की
घुट के जब इंसान में रह जाती है अज़्मत रूह की
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
मसनवी में ख़ामियाँ ढूँडें ज़बाँ की जा-ब-जा
एक शाइ'र ने जो थे शागिर्द-ए-नूह-नार्वी