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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक सुकूत हर तरफ़ होश-रुबा ओ हौल-नाक
ख़ुल्द-ए-वतन के पासबाँ ख़ुल्द-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये आराम-देह बिस्तर पर हम से हम-बिसतरी करते हैं
और कभी हमारी आँवल नाल से चिपक जाते हैं