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नज़्म
शह-दरे में आम के पेड़ों पे कोयल की पुकार
डालियों पर सब्ज़ पत्तों सुर्ख़ फूलों का निखार
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
अँधेरी रातों की काली नागिन सियाहियों में चमक रही है
किरन किरन का लहू पिए है तो मस्त है और बहकर रही है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
नज़्म
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात