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नज़्म
करोड़ों क्यूँ नहीं मिल कर फ़िलिस्तीं के लिए लड़ते
दुआ ही से फ़क़त कटती नहीं ज़ंजीर मौलाना
हबीब जालिब
नज़्म
'ग़ालिब' जिसे कहते हैं उर्दू ही का शाइर था
उर्दू पे सितम ढा कर 'ग़ालिब' पे करम क्यूँ है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़ाक-ए-मरक़द पर तिरी ले कर ये फ़रियाद आऊँगा
अब दुआ-ए-नीम-शब में किस को मैं याद आऊँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल में हर लम्हा तरक़्क़ी की दुआ करते हैं
हम को आगे ही बढ़ाते हैं हमारे उस्ताद