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नज़्म
जिन के हंगामे अभी दरिया में सोते हैं ख़मोश
कश्ती-ए-मिस्कीन-ओ-जान-ए-पाक-ओ-दीवार-ए-यतीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आँख खुली तो आँख में रंग-ए-बहार भर दिया
शीशा-ए-पाक-ओ-साफ़ में ले के ग़ुबार भर दिया