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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो मेरी आँखों पर झुक कर कहती है ''मैं हूँ''
उस का साँस मिरे होंटों को छू कर कहता है ''मैं हूँ''
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
हर आह है ख़ुद तासीर यहाँ हर ख़्वाब है ख़ुद ताबीर यहाँ
तदबीर के पा-ए-संगीं पर झुक जाती है तक़दीर यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सुना? वो क़ादिर-ए-मुतलक़ है एक नन्ही सी जान
ख़ुदा भी सज्दे में झुक जाए सामने उस के
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जहाँ एक चेहरा दरख़्तों की शाख़ों के मानिंद
इक और चेहरे पे झुक कर हर इंसान के सीने में
नून मीम राशिद
नज़्म
हल्की टोपी सर पे रखते हैं तो चकराता है सर
और जूते की तरफ़ बढ़िए तो झुक जाता है सर