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नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
हिसाब-ए-माह-ओ-साल अब तक कभी रक्खा नहीं मैं ने
किसी भी फ़स्ल का अब तक मज़ा चक्खा नहीं मैं ने
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो मेरे आसमाँ पर अख़्तर-ए-सुब्ह-ए-क़यामत है
सुरय्या-बख़्त है ज़ोहरा-जबीं है माह-ए-तलअत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये अपना इशक़-ए-हम-आग़ोश जिस में हिज्र ओ विसाल
ये अपना दर्द कि है कब से हमदम-ए-मह-ओ-साल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
में क़सम खाता हूँ अपने नुत्क़ के ए'जाज़ की
तुम को बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गर फ़िक्र-ए-ज़ख्म की तो ख़ता-वार हैं कि हम
क्यूँ महव-ए-मद्ह-ए-खूबी-ए-तेग़-ए-अदा न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस के पर्दे में मिरा माह-ए-रवाँ डूब सके
तुम से चलती रहे ये राह, यूँही अच्छा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस के छू जाते ही मिस्ल-ए-नाज़नीन-ए-मह-जबीं
करवटों पर करवटें लेती है लैला-ए-ज़मीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
किन किन रियाज़तों से गुज़ारे हैं माह-ओ-साल
देखी तुम्हारी शक्ल जब ऐ मेरे नौनिहाल