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नज़्म
याद करते हुए इक यूसुफ़-ए-गुम-गश्ता को
कुछ दिनों रोई तो होगी मिरे घर की दीवार
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
हमेशा मेरे ही साथ जागी हमेशा मेरे ही साथ सोई
मैं ख़ुश हुआ तो ये मुस्कुराई मैं रो दिया तो ये साथ रोई
तारिक़ क़मर
नज़्म
ये हवस ये चोर बाज़ारी ये महँगाई ये भाव
राई की क़ीमत हो जब पर्बत तो क्यूँ न आए ताव