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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
इस इश्क़ पे हम भी हँसते थे बे-हासिल सा बे-हासिल था
इक ज़ोर बिफरते सागर में ना कश्ती थी ना साहिल था