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नज़्म
गर इश्क़ किया है तब क्या है क्यूँ शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिए बिन टल न सके ये ऐसी भी उफ़्ताद नहीं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुलज़ार
नज़्म
सुकूत-आमोज़ तूल-ए-दास्तान-ए-दर्द है वर्ना
ज़बाँ भी है हमारे मुँह में और ताब-ए-सुख़न भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो वादा-ए-फ़र्दा पर अब टल नहीं सकते हैं
मुमकिन है कि कुछ अर्सा इस जश्न पे टल जाएँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बहुत होंगे मुग़न्नी नग़्मा-ए-तक़लीद यूरोप के
मगर बेजोड़ होंगे इस लिए बे-ताल-ओ-सम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
कुछ तबले खड़कें रंग-भरे कुछ ऐश के दम मुँह-चंग भरे
कुछ घुंघरू ताल छनकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उन को पलंग पे बैठे झड़ियों का ख़त उड़ाना
है जिन को अपने घर में याँ लोन तेल लाना